UNHRC: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार (4 फरवरी) को घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के शीर्ष निकाय से बाहर हो जाएगा और फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद करने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के लिए फंडिंग फिर से शुरू भी नहीं करेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार (4 फरवरी) को घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के शीर्ष निकाय से बाहर हो जाएगा और फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद करने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के लिए फंडिंग फिर से शुरू नहीं करेगा.
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक, अमेरिका ने पिछले साल ही जिनेवा स्थित मानवाधिकार परिषद से खुद को बाहर कर लिया था और फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता करने वाली एजेंसी, जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के नाम से जाना जाता है, की फंडिंग बंद कर दी थी. इस एजेंसी पर इज़रायल ने हमास के आतंकवादियों को शरण देने का आरोप लगाया था, जिन्होंने 7 अक्टूबर, 2023 को दक्षिणी इज़रायल में हुए हमलों में भाग लिया था. हालांकि, यूएनआरडब्ल्यूए ने इन आरोपों से इनकार किया है.
मालूम हो कि ट्रंप की ये घोषणा इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात के दौरान सामने आई. इजरायल लंबे समय से मानवाधिकार निकाय और यूएनआरडब्ल्यूए दोनों पर इज़रायल के खिलाफ पूर्वाग्रह और यहूदी विरोधी भावना का आरोप लगाता रहा है.वहीं, इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, मंगलवार को ह्वाइट हाउस में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका गाजा पट्टी पर कब्जा कर लेगा और यदि जरूरत पड़ी तो क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों को तैनात करेगा.
यूएनएचआरसी पर लगाया बड़ा आरोप
विदेश मंत्री यूएनएचआरसी पर बड़ा आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि यूएनएचआरसी यहूदी-विरोधी भावना को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने आगे कहा कि यह ‘परंपरागत रूप से मानवाधिकार उल्लंघनकर्ताओं को जांच से बचने की अनुमति देकर उनकी रक्षा करता रहा है. इसके बजाय मिडिल ईस्ट में एकमात्र लोकतंत्र – इजराइल को जुनूनी रूप से शैतानी रूप में पेश करता रहा है. इस निकाय ने मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के बजाय एक लोकतांत्रिक देश पर हमला किया. उन्होंने कहा कि ये हमारे खिलाफ स्पष्ट भेदभाव है.
इजरायल के खिलाफ 100 से अधिक निंदा प्रस्ताव पारित किए गए
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इजराइल एकमात्र ऐसा देश है जिसका एजेंडा आइटम पूरी तरह से इजरायल के लिए समर्पित है. इजरायल के खिलाफ 100 से अधिक निंदा प्रस्ताव पारित किए गए हैं, जो परिषद में अब तक पारित सभी प्रस्तावों का 20फीसदी से अधिक है. यह संख्या ईरान, क्यूबा, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला के खिलाफ पारित प्रस्तावों से भी अधिक है. इजरायल अब इस भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेगा!’
इजरायल के विदेश मंत्री की ओर से यह घोषणा इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की अमेरिका यात्रा के दौरान की गई. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मंगलवार (स्थानीय समयानुसार) को वाशिंगटन डीसी में इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह घोषणा की.
हमास को धन मुहैया कराने का आरोप
ट्रंप ने ‘यहूदी विरोधी’ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) से अमेरिका के अलग होने की घोषणा की, जिन पर हमास के साथ संबंधों के आरोपों को लेकर काफी आलोचना हुई थी.
उन्होंने कहा,’मुझे यह घोषणा करते हुए भी प्रसन्नता हो रही है कि आज दोपहर अमेरिका ने यहूदी विरोधी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से अपना नाम वापस ले लिया है तथा संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी को दी जाने वाली सभी सहायता समाप्त कर दी है. ये हमास को धन मुहैया कराती थी तथा जो मानवता के प्रति बहुत विश्वासघाती थी.’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, ‘आज मैंने ईरानी शासन पर हमारी अधिकतम दबाव नीति को बहाल करने के लिए भी कार्रवाई की है. हम एक बार फिर सबसे आक्रामक संभव प्रतिबंधों को लागू करेंगे. ईरानी तेल निर्यात को शून्य कर देंगे और पूरे क्षेत्र और दुनिया भर में आतंकवाद को वित्तपोषित करने की शासन की क्षमता को कम कर देंगे.’
अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू रविवार को ट्रंप के साथ गाजा युद्ध विराम समझौते के साथ-साथ मध्य पूर्व की योजनाओं पर चर्चा करने के लिए अमेरिका पहुंचे. अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार इजरायली प्रधानमंत्री के अमेरिकी सैन्य नेताओं और कांग्रेस के सदस्यों के साथ भी बैठक करने की उम्मीद है.
ये बैठकें कई दिनों तक चलेंगी. इजरायली प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान संयुक्त सम्मेलन में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, ‘अमेरिकी और इजरायली लोगों के बीच दोस्ती और स्नेह के बंधन पीढ़ियों से कायम हैं और वे बिल्कुल अटूट हैं.
ट्रंप 18 लाख फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर करना चाहते
15 महीने से अधिक समय से चल रहे विनाशकारी संघर्ष के बाद गाजा के लोगों की मदद के लिए मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण आपूर्ति बढ़ाने का वादा किया गया है. अब ट्रंप लगभग 18 लाख लोगों को उस भूमि को छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहते हैं जिसे वे अपना घर कहते हैं. संभवतः अमेरिकी सैनिकों के साथ इस क्षेत्र पर अपना दावा करना चाहते हैं.
ट्रंप ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ व्हाइट हाउस में वार्ता के दौरान अपने विचारों को रखा जहां दोनों नेताओं ने इजरायल-हमास संघर्ष में नाजुक युद्ध विराम और बंधक समझौते पर भी चर्चा की और ईरान के बारे में चिंताओं को साझा किया.
ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका गाजा पट्टी को नियंत्रण में लेकर यहां से ज़िंदा बमों को हटाकर, पुनर्निमाण करके और अर्थव्यवस्था को गति देकर सच्चा काम कर सकता है. उन्होंने ये भी कहा कि हम पहले जैसी स्थिति में वापस नहीं जा सकते वरना इतिहास खुद को दोहराएगा.
ट्रंप के अन्य कार्यकारी आदेशों में पेरिस स्थित संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, जिसे यूनेस्को के नाम से जाना जाता है, में अमेरिकी भागीदारी की समीक्षा और ‘विभिन्न देशों के बीच फंडिंग के स्तर में भारी असमानताओं’ के आलोक में संयुक्त राष्ट्र के लिए अमेरिकी फंडिंग की समीक्षा का भी आह्वान किया गया है.
ज्ञात हो कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र के नियमित परिचालन बजट का 22 प्रतिशत भुगतान करता है, जिसमें चीन दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है.
ट्रंप ने ओवल ऑफिस में संवाददाताओं से कहा, ‘मैंने हमेशा महसूस किया है कि संयुक्त राष्ट्र में जबरदस्त संभावनाएं हैं. अभी यह उस क्षमता पर खरा नहीं उतर रहा है. …उन्हें अपना काम एक साथ करना होगा.’
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को उन देशों के प्रति निष्पक्ष होने की ज़रूरत है जो निष्पक्षता के पात्र हैं. उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे देश हैं, जिनका उन्होंने नाम नहीं लिया, जो बाहरी हैं, जो बहुत बुरे हैं और उन्हें लगभग प्राथमिकता दी जा रही है.
ट्रंप की घोषणा से पहले, संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने ‘फिलिस्तीनियों को महत्वपूर्ण सेवाएं’ प्रदान करने में मानवाधिकार परिषद के महत्व और यूएनआरडब्ल्यूए के काम को दोहराया.
मालूम हो कि ट्रंप ने जून 2018 में अमेरिका को मानवाधिकार परिषद से बाहर निकाल दिया था. उस समय संयुक्त राष्ट्र में उनकी राजदूत, निक्की हेली ने परिषद पर ‘इजरायल के खिलाफ लगातार पूर्वाग्रह’ का आरोप लगाया था और बताया था कि उन्होंने जो कहा वह इसके सदस्यों के बीच मानवाधिकारों का हनन करने वाला था.
इसके बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने मानवाधिकार परिषद के लिए फिर से समर्थन बहाल किया और अमेरिका ने अक्टूबर 2021 में इस 47 सदस्य राष्ट्र निकाय में एक सीट जीती. लेकिन बाइडन प्रशासन ने सितंबर के अंत में घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका लगातार दूसरे कार्यकाल की तलाश नहीं करेगा.
ट्रंप के फैसले पर परिषद के प्रवक्ता पास्कल सिम ने कहा, ‘ट्रंप के मौजूदा आदेश का कोई ठोस प्रभाव नहीं है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पहले से ही परिषद का सदस्य नहीं है. लेकिन अन्य सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों की तरह अमेरिका को स्वचालित रूप से अनौपचारिक पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है और अभी भी जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र परिसर में परिषद के गोल कक्ष में एक सीट होगी.
गौरतलब है कि यूएनआरडब्ल्यूए की स्थापना 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा उन फ़िलिस्तीनियों और उनके वंशजों को सहायता प्रदान करने के लिए की गई थी, जो इज़रायल की स्थापना के बाद 1948 के अरब-इज़रायल युद्ध से पहले और उसके दौरान अपने घरों को छोड़ आए थे या निष्कासित कर दिए गए थे. ये एजेंसी गाजा, कब्जे वाले वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में लगभग 2.5 मिलियन फ़िलिस्तीनियों के साथ-साथ सीरिया, जॉर्डन और लेबनान में 3 मिलियन से अधिक फिलिस्तीनियों को सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाएं प्रदान करती है.
7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमलों से पहले, यूएनआरडब्ल्यूए ने गाजा के 6,50,000 बच्चों के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए स्कूल चलाए और मानवीय सहायता पहुंचाने में मदद की. इसने स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना जारी रखा है और युद्ध के दौरान फिलिस्तीनियों को भोजन और अन्य सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण रहा है.पहले ट्रंप प्रशासन ने 2018 में यूएनआरडब्ल्यूए की फंडिंग निलंबित कर दी थी, लेकिन बाइडन ने इसे बहाल कर दिया. अमेरिका इस एजेंसी के लिए सबसे बड़ा दानदाता रहा है, जिसने इसे 2022 में $343 मिलियन और 2023 में $422 मिलियन प्रदान किए.
वर्षों से इज़रायल यूएनआरडब्ल्यूए पर अपनी शिक्षा सामग्री में इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह का आरोप लगाता रहा है, जिसे एजेंसी नकारती रही है.
इज़रायल का आरोप है कि गाजा में यूएनआरडब्ल्यूए के 13,000 कर्मचारियों में से 19 ने हमास के हमलों में भाग लिया. संयुक्त राष्ट्र की जांच लंबित रहने तक उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, जिसमें पाया गया कि नौ लोग शामिल हो सकते हैं.
इसके जवाब में 18 सरकारों ने एजेंसी की फंडिंग रोक दी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को छोड़कर सभी ने समर्थन बहाल कर दिया है. अमेरिकी फैसले की पुष्टि करने वाले कानून ने मार्च 2025 तक यूएनआरडब्ल्यूए को किसी भी अमेरिकी फंडिंग पर रोक लगा दी, और ट्रंप की मंगलवार की कार्रवाई का मतलब है कि इसे बहाल नहीं किया जाएगा.
ट्रंप का प्लान गाजा पर कब्जा कर सुंदर शहर बसाएंगे
ट्रंप का कहना है कि फिलिस्तीनियों वापस गाजा नहीं जाना चाहिए. उनका मानना है कि अभी गाजा रहने के लायक नहीं है. वह चाहते हैं कि फिलिस्तीनी फिलहाल किसी दूसरे स्थान पर जाकर रहें. वे ऐसे स्थान पर रहें जहां लोग खुश रहें. ट्रंप का प्लान है कि अमेरिका गाजा पट्टी का स्वामित्व ले लेगा और फिलिस्तीनियों को अन्यत्र बसाए जाने के बाद उसका पुनर्विकास करेगा. इस क्षेत्र को ‘रिवेरा ऑफ द मिडिल ईस्ट’ में बदला जाएगा जिसमें ‘दुनिया के लोग’ रहेंगे. इनमें फिलिस्तीनी भी शामिल हैं.
अमेरिका के सहयोगियों ने ट्रंप को आगाह किया
ट्रंप ने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करेंगे कि यह विश्व स्तर पर हो. यह फिलिस्तीनियों के लिए अद्भुत होगा. खासकर फिलिस्तीनियों के लिए, जिनकी हम बात कर रहे हैं.’ मिस्र, जॉर्डन और मध्य पूर्व में अमेरिका के अन्य सहयोगियों ने ट्रंप को आगाह किया है कि गाजा से फिलिस्तीनियों को स्थानांतरित करने से मिडिल ईस्ट की स्थिरता को खतरा होगा. संघर्ष के विस्तार का खतरा होगा और अमेरिका तथा उसके सहयोगियों द्वारा दो-राज्य समाधान के लिए दशकों से किया जा रहा प्रयास कमजोर होगा.
ट्रंप बोले- फिलिस्तीनियों को गाजा को छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है
फिर भी ट्रंप ने जोर देकर कहा कि फिलिस्तीनियों के पास गाजा के ‘मलबे के बड़े ढेर’ को छोड़ने के अलावा ‘कोई विकल्प नहीं है’. उन्होंने यह बात तब कही जब उनके शीर्ष सहयोगियों ने जोर देकर कहा कि युद्धग्रस्त क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए तीन से पांच साल की समय सीमा व्यवहार्य नहीं है. पिछले सप्ताह मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी और जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय ने गाजावासियों को पुनर्स्थापित करने के ट्रंप के आह्वान को खारिज कर दिया था.
लेकिन ट्रंप ने कहा कि उनका मानना है कि मिस्र और जॉर्डन- साथ ही अन्य देश, जिनका उन्होंने नाम नहीं लिया – अंततः फिलिस्तीनियों को स्वीकार करने पर सहमत हो जाएंगे. ट्रंप ने कहा, ‘आप दशकों पर नजर डालें, तो पाएंगे कि गाजा में हर जगह मौत ही मौत है. यह सालों से हो रहा है. अगर हम लोगों को स्थायी रूप से बसाने के लिए एक सुंदर क्षेत्र पा सकें, जहां वे खुश रह सकें. उन्हें गोली न मारी जाए जैसा कि गाजा में हो रहा है.
गाजा के पुनर्निर्माण में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती
ट्रंप ने यह भी कहा कि वे गाजा के पुनर्निर्माण में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती से इनकार नहीं कर रहे हैं. वे इस क्षेत्र के पुनर्विकास पर ‘दीर्घकालिक’ अमेरिकी स्वामित्व की कल्पना करते हैं. ट्रंप ने अमेरिकी सैनिकों को तैनात करने की संभावना के बारे में कहा कि हम जो भी आवश्यक होगा करेंगे.
गाजा के भविष्य पर व्हाइट हाउस का ध्यान ऐसे समय में आया है, जब इजरायल और हमास के बीच ताजा संघर्ष विराम अधर में लटका हुआ है. नेतन्याहू को गाजा में हमास लड़ाकों के खिलाफ अस्थायी संघर्ष विराम को समाप्त करने के लिए अपने दक्षिणपंथी गठबंधन और युद्ध से थके हुए इजरायलियों से प्रतिस्पर्धी दबाव का सामना करना पड़ रहा है. शेष बंधकों को घर वापस लाना चाहते हैं और 15 महीने से चल रहे संघर्ष को समाप्त करना चाहते हैं.
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, फिलिस्तीनी प्राधिकरण और अरब लीग ने गाजा और कब्जे वाले पश्चिमी तट में फिलिस्तीनियों को उनके क्षेत्रों से बाहर निकालने की योजना को खारिज करने में मिस्र और जॉर्डन का साथ दिया.
ट्रंप शायद यह शर्त लगा रहे हैं कि वह मिस्र और जॉर्डन को विस्थापित फिलिस्तीनियों को स्वीकार करने के लिए राजी कर सकते हैं, क्योंकि अमेरिका काहिरा और अम्मान को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है. नेतन्याहू की सरकार के कट्टरपंथी दक्षिणपंथी सदस्यों ने विस्थापित फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर निकालने के आह्वान को स्वीकार कर लिया है.
अमेरिका का नया फरमान, इजराइल व मिस्र को छोड़कर अन्य सभी देशों की नई मदद पर रोक लगाई –
अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने मानवीय खाद्य कार्यक्रमों और इजराइल व मिस्र को मिलने वाली सैन्य सहायता को छोड़कर दुनियाभर में लगभग सभी विदेशी सहायता कार्यक्रमों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है.
मंत्रालय के इस आदेश के बाद दुनियाभर में स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास, रोजगार प्रशिक्षण और अन्य कार्यों से जुड़ीं अनगिनत परियोजनाएं रुकने का खतरा बढ़ गया है. अमेरिका इन विदेशी परियोजनाओं के लिए सबसे ज्यादा मदद मुहैया कराता है.
ऐसा प्रतीत होता है कि यह उन सहायता कार्यक्रमों को समाप्त करने की शुरुआत है, जिन्हें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी हित में नहीं मानते. दुनिया भर में अमेरिकी दूतावासों को भेजे गए इस आदेश में नए सरकारी खर्च पर रोक लगा दी गई है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्यक्रम तभी तक जारी रहेंगे जब तक उनके पास पूर्व में जारी धनराशि उपलब्ध रहेगी.इस रोक के दौरान विदेश मंत्रालय इस बात की समीक्षा करेगा कि अमेरिकी सहायता से चलने वाले हजारों कार्यक्रमों में से कौन से कार्यक्रम जारी रखे जा सकते हैं. मंत्रालय के आदेश में उस कार्यकारी आदेश के क्रियान्वयन का उल्लेख है, जिस पर ट्रंप ने सोमवार को हस्ताक्षर किए थे.
शुक्रवार के आदेश ने मानवीय अधिकारियों को विशेष रूप से निराश किया, क्योंकि इसमें स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों और अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों को नयी वित्तपोषण रोक से बचाने के लिए कोई छूट नहीं दी गई है.
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