Ratan Tata Old Memory: भारत देश के महान उद्योगपति श्री रतन टाटा जी का निधन देश के लिए कभी ना पूरी होने वाली हानि है। श्री रतन टाटा जी ने अपनी कड़ी मेहनत से उद्योग जगत में भारत का लोहा दुनिया भर में मनवाया है। श्री रतन टाटा जी ने न केवल औद्योगिक जगत में विश्व में पहचान बनाई बल्कि उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में भी अनेक कार्य किये। रतन टाटा जी की यह विरासत हमेशा समाज को प्रेरणा देने का काम करेगी। आज हम आपको रतन टाटा जी के जीवन के कुछ बेहतरीन किस्सों के बारे में बताने जा रहे है। आपको इन किस्सो को जरूर पढ़ना चाहिए यह आपको जरूर प्रेरित करेंगे।
उद्योगपति श्री रतन टाटा का 9 अक्टूबर, 2024 को मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली है। टाटा समूह की ओर से उनके निधन की पुष्टी कर दी गई है। वहीं, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है। स्वास्थ कारणों के चलते उन्हें मुंबई के ब्रिच कैंडी हस्पताल में भर्ती कराया गया था। श्री रतन टाटा जी ने समूह का हिस्सा होते हुए टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा आज टाटा समूह का सिक्का विश्व भर में माना जाता है इसका श्रेय श्री रतन टाटा जी को ही जाता है। सन 2000 मैं भारत सरकार ने श्री रतन टाटा जी को पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा था और 2008 में उन्हें पद्म विभूषण पर पुरस्कार से नवाजा गया था। आई आज इस लेख के जरिए हम आपको उनके जीवन में जुड़ी कुछ घटनाओं के बारे में बताते हैं।
श्री रतन टाटा जी का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था उनके पिता श्री नवल टाटा थे और माता सूनी कमिसारिएट थी। जब रतन टाटा महज 10 साल के थे तो उनके माता-पिता अलग हो गए। उसके बाद फ़िर उन्हें उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने जे. एन. पेटिट पारसी अनाथालय से उन्हें गोद लिया था। रतन टाटा का पालन-पोषण उनके सौतेले भाई नोएल टाटा (नवल टाटा और सिमोन टाटा के पुत्र) के साथ किया गया था। रतन टाटा ने मुंबई शिमला और न्यूयॉर्क में अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की इसके बाद वह कॉर्नेल यूनिवर्सिटी हावर्ड हॉवर्ड बिजनेस स्कूल में भी पढ़ने गए।
कब रतन टाटा टाटा संस के अध्यक्ष बने
सन् 1991 में जेआरडी टाटा ने टाटा समूह के अध्यक्ष के पद से अपना इस्तीफा दे दिया था। तो उन्होंने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। इसके बाद टाटा समूह की कमान रतन टाटा जी के हाथ में आ गई थी। हालांकि उसे समय इनका जमकर विरोध भी हुआ था कई कंपनियों के प्रमुखों ने उनकी नियुक्ति को लेकर इन का विरोध जताया था। हालांकि धीरे-धीरे भी विरोध कम हो गया। और रतन टाटा जी ने टाटा समूह को पूरी तरह एकजुट कर लिया। रतन टाटा जी के 21 वर्षों के कार्यकाल के मे टाटा ग्रुप का राजस्व 40 गुना से अधिक तथा लाभ 50 गुना से अधिक बढ़ गया। उन्होंने टाटा टी को टेटली, टाटा मोटर्स को जगुआर लैंड रोवर तथा टाटा स्टील को कोरस का अधिग्रहण करने में मदद करी , जिससे यह संगठन मुख्यतः भारत-केंद्रित समूह से वैश्विक व्यवसाय में परिवर्तित हो गया और टाटा समूह अब विश्व स्तरीय व्यावसायिक ग्रुप बन चुका था।
दुनिया की सबसे सस्ती से लेकर सबसे महंगी गाड़ी बनाई
उन्होंने टाटा नैनो कार की भी संकल्पना तैयार की थी। यह उनका सपना था कि भारत का आम आदमी भी आसानी से अपनी कर खरीद सके उन्होंने इसे लाख टकिया कर का नाम दिया। उन्होंने दुनिया की सबसे सस्ती कर टाटा नैनो से लेकर दुनिया की सबसे महंगी गाड़ी जगुआर और रेंज रोवर तक को बनाने का काम किया। उसके बाद 28 दिसंबर 2012 को 75 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर रतन टाटा जी ने टाटा समूह के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया । उनके बाद साइरस मिस्त्री को टाटा समूह की कमान सौंपी गई। उसके बाद टाटा समूह के लीगल विभाग ने साइरस मिस्त्री का विरोध किया और उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। उसके बाद दोबारा से रतन टाटा को समूह का अध्यक्ष बनाया गया।
अब रतन टाटा के बाद कौन बना टाटा समूह का अध्यक्ष
टाटा समूह के अध्यक्ष को चुनने के लिए रतन टाटा वेणु श्रीनिवासन अमित चंद्रा और रोनन सेन और लॉर्ड कुमार की एक चैन समिति बनाई गई जिसने टाटा समूह के अध्यक्ष का चुनाव किया। इस समिति ने 12 जनवरी 2017 को नटराजन चंद्रशेखरन को टाटा संस का अध्यक्ष नामित कर दिया। रतन टाटा ने अपनी निजी बचत स्नैपडील, टीबॉक्स, Ola Cabs इत्यादि कंपनियां में निवेश कर दी।
रतन टाटा जी द्वारा किए गए सामाजिक कार्य
रतन टाटा जी ने अनेक ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल को उपलब्ध करवाने के लिए रिसर्च करने वाले न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय को बड़ी मात्रा में फंड दिया। इसके अलावा टाटा 28 मिलियन डॉलर की छात्रवृत्ति योजना लागू की जिससे अनेक गरीब छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने में सहायता मिलती है। टाटा समूह विदेश में शिक्षा प्राप्त करने हेतु भी भारतीय छात्रों की सहायता करता है। टाटा समूह ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भी छात्रों की सहायता के लिए 50 मिलियन डॉलर का दान किया। टाटा ट्रस्ट्स ने भारतीय विज्ञान संस्थान, न्यूरोसाइंस सेंटर को अल्जाइमर रोग के कारणों के अंतर्निहित तंत्र का अध्ययन करने तथा इसके शीघ्र निदान और उपचार के लिए तरीके विकसित करने हेतु 750 मिलियन रुपये का अनुदान भी प्रदान किया था। इसके अलावा टाटा समूह ने एक बड़े कैंसर हॉस्पिटल का भी निर्माण करवाया।
जानिए रतन टाटा जी ने शादी क्यों नहीं की
रतन टाटा जी ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब वह अमेरिका में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तो उन्हें एक लड़की से प्यार हो गया था। फिर रतन टाटा जी ने चार बार शादी करने का प्रयास किया परंतु हर बार नहीं कर पाए फिर रतन टाटा जी को अमेरिका छोड़कर भारत लौटना पड़ा। परंतु रतन टाटा जी की प्रेमिका को उनके घर वालों ने भारत आने की अनुमति नहीं दी। रतन टाटा जी को भी अपना कारोबार संभालने के लिए भारत आना पड़ा और फ़िर रतन टाटा जी ने आजीवन शादी नही की।
अब कौन आगे लेकर जाएगा रतन टाटा जी की विरासत
यहां बात टाटा समूह के व्यावसायिक उत्तर अधिकारी की नहीं बल्कि उनकी पूरी विरासत को संभालने के लिए है फिलहाल टाटा समिति कमान नटराजन चंद्रशेखर के हाथों में है रतन टाटा का उत्तराधिकारी बनने की दौड़ में नोएल टाटा और उनके बच्चे सबसे आगे माने जा रहे हैं. नोएल टाटा, रतन टाटा के सौतेले भाई हैं और टाटा समूह में गहरी भागीदारी रखते हैं औरउनकी बेटी माया टाटा और बेटे नेविल टाटा भी समूह में प्रमुख भूमिकाएँ निभा रहे हैं।
रतन टाटा जी के जीवन का एक अनूठा किस्सा
साल 1992 में इंडियन एयरलायंस के कर्मचारियों से एक सर्वेक्षण के माध्यम से पूछा गया था कि, दिल्ली से मुंबई की फ्लाइट में सबसे प्रभावशाली या यूं कहें कि, सबसे अच्छा यात्री कौन था तो अधिकतर लोगों ने एक ऐसे यात्री का नाम लिया जो बेहद कम चीनी के साथ ब्लैक कॉफी मांगा करता था। ये यात्री कभी किसी भी अटेंडेंट को परेशान भी नहीं करता था। एक बार फ्लाइट ने उड़ान भरी तो चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो जाता था और न लगेज उठाने के लिए कोई असिस्टेंट और न ही फाइल संभालने के लिए कोई अन्य व्यक्ति उनके साथ होता था। इस व्यक्ति का नाम था रतन टाटा। शांत रहना, अपने से छोटों का सम्मान करना और बिना किसी दिखावे के सादा जीवन जीना उनके बहुत से गुणों में से एक है।
यह थे रतन टाटा के सबसे करीबी दोस्त
रतन टाटा को जानने वाले लोगो ने हमे बताया की उनके सबसे करीब दोस्त थे टीटी और टैंगों। ये थे उनके पालतू कुत्ते उनके दोनों कुत्तों से ज्यादा उनके करीब और कोई नहीं था। रतन टाटा अपने दोनों जर्मन शेफर्ड कुत्तों से रतन टाटा बेहद प्यार करते थे। रतन टाटा को कुत्तों से कितना प्यार था उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, बॉम्बे हॉउस की लॉबी जहां किसी बाहरी व्यक्ति को अंदर आने की अनुमति नहीं थी वहां आवारा कुत्ते खुल कर घूमा करते थे। जब कभी रतन टाटा बॉम्बे हॉउस आया करते थे तो उनके पीछे आवारा कुत्ते लिफ्ट तक भी आ जाया करते थे। वह जीवन को प्यार करने वाले एक शानदार इंसान थे।
Life changing story: ‘जिंदगी की दौड़’ ये कहानी आपके जीवन जीने का नजरिया बदल देगी
One thought on “Ratan Tata Old Memory: रतन टाटा सर का ये किस्सा आपको जरूर पढ़ना चाहिए, ऐसे थे रतन टाटा साहब”