Live India-Pakistan conflict: युद्ध के बीच आईएमएफ और अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आर्थिक मदद: एक विश्लेषण

Live India-Pakistan conflict:   हाल के दिनों में, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर चल रहा है। अप्रैल 2025 में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और गहरा कर दिया। दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष चल रहा है। दोनों और से गोलाबारी जारी है। इसी बीच , अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और अमेरिका  ने 9 मई 2025 को पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता को मंजूरी दी, जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया। इस सहायता में अमेरिका की भूमिका को लेकर भी कई सवाल उठे हैं, क्योंकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका ने इस प्रक्रिया में अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया। यह लेख इस जटिल मुद्दे का गहन विश्लेषण करता है, जिसमें युद्ध की स्थिति, आईएमएफ की सहायता, अमेरिका की भूमिका, भारत की चिंताएं, और इसके भू-राजनीतिक प्रभाव शामिल हैं।

1. भारत-पाकिस्तान तनाव और पहलगाम हमला

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास लंबा और जटिल है, जिसमें कश्मीर एक प्रमुख विवाद का केंद्र रहा है। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने जिम्मेदारी ली, ने इस तनाव को और बढ़ा दिया। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इस हमले को सीमा पार आतंकवाद का स्पष्ट उदाहरण बताया और पाकिस्तान पर आतंकी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया। भारत ने इस हमले को न केवल अपनी संप्रभुता पर हमला माना, बल्कि इसे पाकिस्तान की ओर से एक सुनियोजित रणनीति के रूप में देखा।

इसके जवाब में, भारत ने न केवल सैन्य कार्रवाई की, बल्कि वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। विशेष रूप से, भारत ने आईएमएफ की बोर्ड मीटिंग में पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर सवाल उठाए, यह तर्क देते हुए कि ये फंड आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए दुरुपयोग किए जा सकते हैं।

2. आईएमएफ की सहायता और इसका समय

9 मई 2025 को, आईएमएफ ने पाकिस्तान को 7 बिलियन डॉलर के 39 महीने के विस्तारित फंड सुविधा (ईएफएफ) कार्यक्रम के तहत 1 बिलियन डॉलर की तत्काल सहायता को मंजूरी दी। यह सहायता पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को स्थिर करने के लिए थी, जो उच्च विदेशी कर्ज, कम विदेशी मुद्रा भंडार, और लगातार संतुलन भुगतान संकट से जूझ रही है। आईएमएफ के अनुसार, यह सहायता कर संरचना में सुधार, ऊर्जा क्षेत्र में सुधार, और उपयोगिता मूल्य समायोजन जैसे सुधारों पर सशर्त थी।

हालांकि, इस सहायता का समय विवादास्पद रहा है । भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच, कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या यह सहायता अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की सैन्य गतिविधियों को समर्थन दे सकती है। भारत ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि ऐसी सहायता “सीमा पार आतंकवाद को प्रोत्साहन देने का खतरनाक संदेश” देती है। पाक इस राशि का प्रयोग भारत के विरुद्ध युद्ध मे करेगा।

3. अमेरिका की भूमिका

अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से जटिल रहे हैं, जिसमें अफगानिस्तान युद्ध और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध जैसे मुद्दों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2001 के बाद से, अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता के रूप में 33 बिलियन डॉलर से अधिक प्रदान किए हैं। हालांकि, 2018 में ट्रम्प प्रशासन ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता में 300 मिलियन डॉलर की कटौती की, यह दावा करते हुए कि पाकिस्तान तालिबान और अन्य आतंकी समूहों के खिलाफ पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रहा है।

2025 में, आईएमएफ की सहायता में अमेरिका की भूमिका को लेकर कई अटकलें लगाई गईं। कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया कि अमेरिका ने इस सहायता को मंजूरी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, संभवतः यह सुनिश्चित करने के लिए कि पाकिस्तान चीन के प्रभाव से बाहर रहे। उदाहरण के लिए, एक पोस्ट में कहा गया कि अगर आईएमएफ पाकिस्तान को ऋण नहीं देता, तो चीन इस अवसर का लाभ उठाकर अपनी स्थिति मजबूत कर सकता था, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के माध्यम से।

यह भी उल्लेखनीय है कि 2023 में, पाकिस्तान ने यूक्रेन के लिए हथियारों की गुप्त बिक्री के माध्यम से अमेरिका की मदद की थी, जिसके बदले में उसे आईएमएफ से बेलआउट पैकेज प्राप्त हुआ था। यह घटना इस बात का संकेत देती है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सहायता के बदले में भू-राजनीतिक सौदेबाजी का इतिहास रहा है।

4. भारत की चिंताएं

भारत ने आईएमएफ की सहायता पर कई आधारों पर आपत्ति जताई। पहला, भारत का मानना है कि पाकिस्तान ने अतीत में आईएमएफ के 24 बेलआउट पैकेजों का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया, और ये फंड अक्सर सैन्य-खुफिया संचालन, जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों को समर्थन देने के लिए दुरुपयोग किए गए।

दूसरा, भारत ने पाकिस्तान की सेना की आर्थिक मामलों में गहरी भागीदारी पर चिंता जताई। 2021 के एक संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में सैन्य-संबंधित व्यवसाय देश का सबसे बड़ा समूह हैं, और सेना का विशेष निवेश सुविधा परिषद (एसआईएफसी) में अग्रणी भूमिका है। भारत का तर्क है कि ऐसी स्थिति में, आईएमएफ के फंड का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए हो सकता है।

तीसरा, भारत ने वैश्विक वित्तीय संस्थानों की प्रक्रियाओं में नैतिक मूल्यों को शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया। भारत के वित्त मंत्रालय ने कहा कि आईएमएफ की प्रक्रियाएं “प्रक्रियात्मक और तकनीकी औपचारिकताओं” तक सीमित हैं, जो आतंकवाद के वित्तपोषण जैसे गंभीर मुद्दों को सं संबोधित करने में विफल रहती हैं।

5. भू-राजनीतिक प्रभाव

आईएमएफ की सहायता और अमेरिका की कथित भूमिका के कई भू-राजनीतिक प्रभाव हैं। सबसे पहले, यह सहायता पाकिस्तान को आर्थिक रूप से स्थिर करने में मदद कर सकती है, जिससे वह भारत के खिलाफ अपनी सैन्य गतिविधियों को जारी रख सकता है। दूसरी ओर, यह अमेरिका को दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने का अवसर प्रदान करता है।

हालांकि, भारत की कड़ी आपत्ति और वैश्विक मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की रणनीति ने पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा दिया है। भारत ने न केवल आईएमएफ, बल्कि विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसे अन्य बहुपक्षीय संस्थानों से भी पाकिस्तान की सहायता की समीक्षा करने का आग्रह किया है।

6. निष्कर्ष

युद्ध के बीच आईएमएफ और संभावित रूप से अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी गई आर्थिक सहायता ने क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति में एक नया आयाम जोड़ा है। भारत की चिंताएं, विशेष रूप से आतंकवाद के वित्तपोषण और पाकिस्तान की सेना की आर्थिक भूमिका के बारे में, गंभीर हैं और वैश्विक वित्तीय संस्थानों के लिए एक चुनौती पेश करती हैं। दूसरी ओर, अमेरिका की रणनीति दक्षिण एशिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने और चीन के प्रभाव को कम करने की प्रतीत होती है।

इस स्थिति का भविष्य अनिश्चित है। यदि पाकिस्तान आईएमएफ की शर्तों का पालन करता है और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करता है, तो यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सकारात्मक हो सकता है। हालांकि, अगर भारत की चिंताएं सही साबित होती हैं और ये फंड आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किए जाते हैं, तो यह भारत-पाकिस्तान तनाव को और गहरा सकता है। वैश्विक समुदाय, विशेष रूप से आईएमएफ और अमेरिका, को इस संवेदनशील मुद्दे पर सावधानीपूर्वक विचार करना होगा ताकि शांति और स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सके।।

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